True knowledge of KABIR saheb.



||| इस सत्य घटना का इतिहास गवाह है |||

  यह उस समय की बात है जब परमात्मा कबीर काशी शहर में रहते थे। उन्हें वहाँ रहते 120 वर्ष हो गए थे । उन दिनों काशी के कर्मकांड़ी पंडितों (तथाकथित गुरुओं) ने यह धारणा फैला रखी थी कि जो मगहर में मरेगा वह गधा बनेगा और जो काशी में मरेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा ।

परमेश्वर कबीर जी ने इस भ्रम के निवारण के लिए तय किया कि मैं मगहर में जाकर अपना तेज पुंज का शरीर त्यागने की लीला करूंगा जिससे समाज में फैली यह भ्रांति पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगी । उन्होनें घोषणा कि ऐ पंडितों! देख लेना कि मगहर जाकर भी स्वर्ग से ऊपर (सतलोक) जाऊंगा ।

यह कहकर परमेश्वर कबीर जी ने काशी से मगहर के लिए प्रस्थान किया । बीर सिंह बघेला और बिजलीखां पठान दोनों ही कबीर साहेब के शिष्य थे । दोनों में लड़ाई रहती थी ।  दोनों ही कबीर साहब को दूसरे से ज़्यादा प्रेमी मानते थे । दोनों पक्षों में यह बात चल पड़ी कि कबीर साहब के मरने के बाद उन्हे उनकी रीति से ही अंतिम संस्कार किया जाएगा ।

बीर सिंह बघेला भी परमेश्वर कबीर साहेब के साथ सेना लेकर चल पड़े । निश्चय कर लिया कि परमेश्वर के शरीर छोड़ने के पश्चात उनके शरीर को काशी लाएंगे। हिंदु रीति से उनका अंतिम संस्कार करेंगे । अगर मुसलमान नहीं मानेंगे तो लड़ाई करके शव को लेकर लाएंगे ।

उधर बिजलीखां पठान को सूचना मिली । उसने सूचना मिलते ही परमेश्वर कबीर जी और उनके साथ आने वाले सभी लोगों के लिए खाने पीने की पूरी व्यवस्था कर ली । साथ में सेना भी तैयार कर ली कि हम अपने पीर कबीर साहेब के शव को नहीं ले जाने देंगे । मुसलमान रीति से उनका अंतिम संस्कार करेंगे । दोनों ने लड़ाई करने के लिए सेना तैयार कर रखी थी । यही बुद्धि है इस दुनिया के नादानों की,  परमेश्वर कबीर साहेब हमेशा कहा करते थे कि हिंदू और मुसलमान एक ही परमात्मा की संतान हैं, दो जुदा जुदा नहीं हैं ।

परमेश्वर कबीर साहेब के मगहर पहुंचने पर बिजलीखाँ पठान ने कहा, सतगुरु देव जी स्नान कर लीजिये। परमेश्वर कबीर जी ने कहा । मैं बहते पानी में स्नान करूंगा। बिजली खाँ पठान ने बताया कि यहां पास ही आमी नदी है जो भगवान शिव के श्राप से सूखी पड़ी है उसमें पानी नहीं है । आपके नहाने का प्रबंध कर दिया है, जैसी व्यवस्था गुलाम से हो पाई है । आपके साथ आने वालों की संख्या ज्यादा है इसलिए सभी के नहाने की व्यवस्था नही बन पाएगी । पीने के पानी की उचित व्यवस्था की गई है। बिजलीखाँ पठान के यह कहने के वाबजूद परमेश्वर ने नदी की और चलने का इशारा किया। जैसे यातायात सिपाही रुकी हुई गाड़ियों को चलने का संकेत देता है, सतगुरु देव जी ने नदी की और इशारा किया और नदी चल पड़ी । नदी में पानी पूरे वेग से बहने लगा । सब लोगों ने सतगुरु देव की जयकारे लगाए । यह जानने योग्य है कि आमी नदी आज भी मगहर में बहती है । 

परमेश्वर कबीर साहब ने आदेश दिया कि एक चादर नीचे बिछाओ और दूसरी चादर साथ में रख दो । उसे मैँ ऊपर से ओढ़ लूँगा । परमेश्वर कबीर साहब ने बिजलीखां पठान और बीर सिंह बघेला से पूछा आप दोनों यहाँ अपनी अपनी सेनायें क्यों लेकर आएं हैं । सामने दोनों गर्दन झुकाये खड़े थे । कुछ नही बोले । साथ ही खड़े सामान्यजनों ने जो कबीर साहब के दीक्षित भक्त नहीं थे उन्होनें कहा हम आपके शरीर छोड़ने के बाद आपके शरीर का अंतिम संस्कार हमारे धर्म के अनुसार करेंगे, चाहे उसके लिए लड़ाई ही क्यों न करनी पड़े ।

परमेश्वर कबीर साहिब ने कहा कि खबरदार जो किसी ने लड़ाई की तो । क्या इतने दिनों में तुमको मैंने यही शिक्षा दी थी? अरे नादानों मरने के बाद ये शरीर मिट्टी है जिसे चाहे जला दो या दफना दो कोई अंतर नहीं है, मिट्टी में ही मिल जाना है । फिर परमेश्वर कबीर साहिब ने सबको आदेश दिया कि इन दो चादरों के बीच जो मिले उसको दोनों आधा-आधा बांट लेना । मेरे जाने के बाद किसी को भी लड़ाई न करने की आज्ञा है । परमेश्वर कबीर साहेब की सामर्थ्य से सभी अवगत भी थे। किसी ने कुछ ना बोला सब चुप थे । पर मन ही मन सब ने सोच रखा था कि एक बार परमेश्वर जी को अंतिम यात्रा पर विदा हो जाने दो फिर वही करेंगे जो हम चाहेंगे । उस समय अगर हिन्दू मुसलमानों की लड़ाई होती तो गृह युद्ध होता ।

एक चादर नीचे बिछाई गई जिस पर कुछ फूल भी बिछाए गए । परमेश्वर चादर पर लेट गए । दूसरी चादर ऊपर ओढ़ी और सन 1518 में  परमेश्वर कबीर साहिब सशरीर सतलोक गमन कर गए । थोडी देर बाद आकाशवाणी हुई कि इन दोनों चादरों के बीच में जो कुछ भी मिले, दोनो आधा-आधा बाँट लेंना । ऐसा ही हुआ । देखा तो सुगन्धित फूल मिले ।

सत्त् कबीर नहीं नर देही ।  जारै जरत ना गाड़े गड़ही ।।
पठयो दूत पुनि जहाँ पठाना ।  सुनिके खान अचंभौ माना ।।
दोई दल आई सलाहा अजबही । बने गुरु नहीं भेंटे तबही ।।
दोनों देख तबै पछतावा । ऐसे गुरु चिन्ह नहीं पावा ।।
दोऊ दीन कीन्ह बड़ शोगा ।  चकित भए सबै पुनि लोंगा ।।

           
यह  देखकर बीर सिंह बघेला और बिजलीखां पठान आपस में गले मिलकर खूब रोये । फिर वहां मगहर में हिंदू और मुसलमानों ने एक-एक चादर और आधे आधे  सुगन्धित फूल लेकर 100 फिट की दूरी पर दोनों ने भिन्न-भिन्न यादगार समाधि बना दी जो आज भी मौजूद है और कुछ फूल लाकर एक चौरा (चबूतरा) जहां बैठकर कबीर साहेब सत्संग किया करते थे । वहां काशी-चौरा नाम से यादगार बना दिया जहां अब बहुत बड़ा आश्रम है ।

विहंसी कहयो तब तीनसै , मजार करो संभार।।
हिन्दू तुरक नहीं हौ, ऐसा वचन हमार ।।

______________
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जाएं 👇
www.jagatgururampalji.org
______
आध्यात्मिक ज्ञान की पुस्तक
✓जीने की राह या
✓ज्ञान गंगा

Comments

Popular posts from this blog

किस किस को मिले कबीर भगवान।

Who is kaal

Maghar Leela of God Kabir.